डा. कुंवर बेचैन से कई बार मिलना हुआ हर बार वह मुझे कुछ लिखने को प्रेरित करते रहे. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या लिखूं . डा. साहब ने कहा की तुम ग़ज़ल लिखो. मैंने कहा कि मैं तो ग़ज़ल के बारे में कुछ जनता ही नहीं. उन्होंने कहा अपने मन के भाव लिख कर लाओ. अंततः कुछ लिखने की हिम्मत जुटी. एक शेरनुमा कुछ लिख डाला:
लोगों पर तुम ध्यान न देना चर्चा करेंगे ज्यादा से ज्यादा।
मेरे तुम्हारे रिश्ते पर कुछ बातें करेंगे ज्यादा से ज्यादा। ।
आज के दौरे सितमगरी पर क्या क्या हम पर जुल्म न होंगे ।
लोग तुम्हें भी बह्कायेंगे बारे में मेरे ज्यादा से ज्यादा । ।
लेकर गया डा. साहब के पास. तारिख थी 3 मार्च 1996. डा. साहब ने देखा और कहा की ग़ज़ल में सात बातें मुख्य हैं:
1. शेर 2. मिसरा 3. मत्तला 4. मकता 5. रदीफ़ 6. काफिया और 7. बहर
ग़ज़ल कुछ अशआर (शेर का बहुवचन ) से मिलकर बनती है। या यों कहें की एक काफिया और रदीफ़, एक बहर के चंद अशआर को जिनकी संख्या पांच, सात आदि हो से साथ पढ़े जाने को ग़ज़ल कहते हैं. एक शेर में दो मिसरे या पंक्तियाँ होती हैं. काफिया तुकांत को कहते हैं तथा रदीफ़ वह शब्द या वाक्यांश है हो ग़ज़ल के पहले शेर जिसे मत्तला में दोनों मिसरों के अंत में तथा अन्य शेरों
में दूसरे मिसरे के अंत में आता है. बहर मोटे तौर पर दोनों मिसरों में मात्राओं के सामान होने को कहते हैं, इसकी कुछ बारीकियां कुछ देर बाद बतलाऊंगा. मकता आम तौर पर ग़ज़ल के आखरी शेर को कहते हैं जिसमें शायर अपना नाम देता है. पहले तुम्हारे मत्तले को सुधारते हैं. उस्ताद द्वारा सुधार किये जाने को इस्लाह कहते हैं.
तुम्हारा रदीफ़ है "ज्यादा से ज्यादा" काफिया "चर्चा करेंगे " से मिलना चाहिए
मत्तले के दूसरे मिसरे का काफिया "बातें करेंगे" पहले मिसरे "चर्चा करेंगे " से मेल नहीं खाता है. इसी प्रकार दूसरे शेर के दूसरे मिसरे का काफिया "बारे में मेरे" भी तंग है अर्थात बेमेल है. अब इसे ठीक करते हैं:
लोगों पर तुम ध्यान न देना चर्चा करेंगे ज्यादा से ज्यादा।
हम क्या हैं और तुम क्या हो यह सोचा करेंगे ज्यादा से ज्यादा।।
आज के दौरे सितमगरी पर क्या क्या हम पर जुल्म न होंगे ।
लोग तुम्हें भी बह्कायेंगे रुसवा करेंगे ज्यादा से ज्यादा।।
कुछ कुछ मुझे समझ में आने लगा. लेकिन यह तो डा. साहब की शिक्षा शुरुआत थी. इस दिन को तो बहुत लम्बा और अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होना था. यह बात कुछ समय बाद.
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