Sunday, April 29, 2012

शहर हिल मिल गया The City Becomes Freidly

मिसेस भाम्भ्रा ने कई लोगों से मिलवाया. सर्कल बढ़ता गया. शहर के साहित्यकारों, संगीतज्ञों, पत्रकारों आदि से भेंट हुई, कई गायन, वादन आदि प्रतियोगिताएं में जज बनने लगा.  लेकिन संगीत के नाम पर मुझे उतना भी नहीं आता था जितना उन बच्चों को जिनके कार्यक्रम में मैं जज बनता था. अतः तलाश थी किसी ऐसे की जो संगीत के बारे में कुछ तो बता दे. इसी बीच किट्टू को सैनुस की समस्या हुई, आफिस के एक सहकर्मी सुबिमल बैनर्जी ने डा. सोम नाथ बैनर्जी के बारे में बताया की वह होमियोपैथी के एक कुशल डाक्टर हैं उनको दिखा लो. उनसे कुछ दिनों किट्टू का इलाज चला, लाभ हुआ तो राज, मेरी पत्नी का भी इलाज कराया. भले आदमी थे, बुजुर्ग, लगभग 70 - 75 वर्ष  के किन्तु सुन्दर लाल सुर्ख चेहरा, मीठी वाणी, अच्छे होमियोपैथ. मिलना जुलना होने लगा तो पता चला कि पटियाला घराने के जगत प्रसिद्द गायक उस्ताद बड़े घुलाम अली खां के शिष्य हैं. इच्छ हुई कि इनसे कुछ जन लूं. लेकिन मन मौजी व्यक्ति थे. अतः हिम्मत नहीं होती थी. धीरे धीरे शास्त्रीय संगीत में अपनी रूचि जतलाई. सुन क्र खुश हुए लेकिन कुछ सुनाया अथवा बताया नहीं. आना जाना होता रहा. एक दिन शाम का समय था, मैं मिलने गया था, वर्षा होने लगी थी इसलिए कोई मरीज़ भी नहीं था. खुद ही कुछ गाने लगे, राग मल्हार में. मुझे बहुत भाया. मैंने प्रसंशा की तो कहने लगे की तुम भी कुछ सुनाओ. मैं ठहरा कोरा, कुछ हिचका फिर हिम्मत कर के कुछ सुनाया तो कहने लगे की तुम्हारी डीप सोनोरस वोइस है. तुम गा सकते हो. फिर कुछ दिनों के बाद खुद ही बोले मैं तुम्हें कुछ बताऊंगा. फिर शुरुआत हुई एक लम्बे कठिन रियाज़ की. जो लगभग दो वर्ष तक लगातार चला. मेरे लिए उन्होंने चुना राग भोपाली, खुद ही बंदिश बनाई -  स स ध  प ग रे स रे ध स रे ग रे ग, देखो देखो लोगों सब नन्द दुलाल को. ... कुछ थेओरी भी बताई. मेरा मन में संगीत भरने लगे. इधर उनकी आज्ञा से मैं सगीत प्रतियोगिताएं में जज बनना स्वीकार करने लगा. अब बारी थी डा. कुंवर बेचैन के मेरे जीवन में आने की.

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